रितिका सनवाल, ब्यूरो-अल्मोड़ा
मई के महीने से शुरु हुई उत्तर भारत मे आंधी रुक रुक के आए दिन दस्तक दे रही है। ना जाने ये आंधी कितने लोगों को अपनों से दूर कर देगी ना जाने कितनो का घर तबाह करेगी।पर अगर हम इस आंधी तूफान की वजह तलाशें तो पाएंगे कि कहीं ना कहीं हम ही इसके जिम्मेदार हैं।
वैसे तो सदियों से माना गया है बारिश, धूप, आंधी और तूफान सब प्राकृतिक घटनाऐं हैं पर कहीं ना कहीं हम सब प्रकृति से जुड़े हैं और हमारी दिनचर्या कहीं ना कहीं प्रकृति को प्रभावित करती है।अगर मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो धूल भरी आंधी कभी भी भारत में इस वेग से और इतने बड़े छेत्रफल में नही आई और ये कहीं ना कहीं जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है आने वाले दिनों मे इसका परिणाम और भयंकर हो सकता है।
मैंने इस बात की तह तक जाने की कोशिश की और पाया कि आंधी आने के तीन मुख्य कारण हैं :
नमी, गरम तापमान और हवा को ऊपर की तरफ से दबाव बनाता हुआ ऊष्ण वातावरण,
जैसा कि हम सब जानते ही हैं ए. सी. के बढ़ते इस्तेमाल से, बेहिसाब वाहनों के इस्तेमाल से, बढ़ती फैक्ट्रियां और उनसे निकलती जहरीली गैस, लगातार पेड़ों के कटने से पिछले कुछ वर्षों से तापमान में लगातार बढ़ाेतरी हो रही है और इन सारे कारणों के जिम्मेदार इंसान ही है।
तो हुआ कुछ यूं : राजस्थान की बेहिसाब गर्मी और हरयाणा में चक्रवात परिसंचरण के चलते हवा जो जमीन के नजदीक थी ऊपर कि तरफ धकेलती गई जिससे तूफानी बादल की संरचना हुई,कमी थी तो नमी की और वो नमी मिली बंगाल की खाड़ी से चलती हवाओं से जिनके चलते पूरे उत्तर भारत में आंधी तूफान और बारिस हुई : जिसके चलते अभी तक सौ से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
स्थानीय तूफान की संरचना में सबसे बड़ा हाथ होता है तापमान का, पूरे भारतवर्ष में तापमान सारे रिकार्ड तोड़ चुका है जबकि अभी जून का महीना शुरु भी नहीं हुआ है।और अगर इंसान अभी भी अपनी दिनचर्या में बदलाव नहीं लाए ए. सी. का इस्तेमाल इसी तरह करता रहे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल ना करते हुए अपने खुद के निजी वाहनों का इस्तेमाल करता रहे, पेड़ो को काटता रहे तो इसी तरीके से हम जलवायु परिवर्तन के भागीदार बनते रहेंगे और आने वाले वर्षों में इसी तरीके से आंधी तूफान और बारिश का प्रकोप जारी रहेगा और जिसके परिणाम अभी से ज्यादा भयभीत करने वाले होंगे।
अब भी समय है प्रकृति की इज्जत करो!